सरायकेला खरसावां 18 सितंबर 2025 दिन बृहस्पतिवार प्रेस रिलीज जारी करते हुए कुड़मी कल्याण मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष विधु महतो ने अपील किए हैं एशिया के सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र आदित्यपुर इंडस्ट्री एरिया होने के कारण हमारे देश के बंगाल झारखंड उड़ीसा एवं विभिन्न राज्यों के कुड़मी जाती के लोग यहां पर मजदूरी कर भरण पोषण करने आये थे जो आज इस क्षेत्र बस गए इसीलिए कुड़मी कल्याण मोर्चा के केंद्र अध्यक्ष श्री विशु महतो का कहना है की औद्योगिक क्षेत्र के सभी कंपनी का मालिकों से अपील किए हैं कि अपने-अपने कंपनी में काम करने वाले कुड़मी जाति के मजदूर अगर 20 सितंबर से होने वाली कुड़मी जाति को एस टी में शामिल करने को लेकर रेल टेका ठहर छेका आंदोलन में जो कुड़मी जाती के मजदूर शामिल होने चाहते हैं तो उस मजदूर को कंपनी के मालिक से कुड़मी नेता विशु महतो ने अपील किए हैं कुड़मी जाती के मजदूर को रेल टेका डहर छेका आंदोलन शामिल होने लिए अनुमति दे धन्यवाद
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Thursday, September 18, 2025
पिछले दो-तीन सालों में रसोई गैस के बढ़ते दाम: कैसे बिगाड़ रहे हैं घरों का बजट और बढ़ा रहें महंगाई का बोझ, जानिए
Jharkhand : महंगाई के इस दौर में आटा, दाल से लेकर रसोई गैस तक, लोगोंं के बजट पर लगातार वार कर रही है. ऐसे में महंगाई की इस मार ने रसोई घर के बजट को पूरी तरह से बिगाड़ दिया है, जिसमें सबसे हाथ रसोई गैस का ही है.
हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बीते दिनों ना केवल रसोई गैस के ही दामों में इजाफ़ा हुआ है बल्कि, आटा, दाल, चावल, गरम मसाले, पीसी हुई मिर्च, हल्दी और तो और इलायची से लेकर जीरा तक महंगा हो चुका है. पर जितना इजाफा रसोई गैस के दामों में देखने को मिल है उतनी कीमत शायद ही किसी अन्य चीज़ में देखने को मिली होगी. अगर एक नजर डालें साल बीते कुछ वर्षों में रसोई गैस के दामों पर तो साल 2004 में 241 रुपये, साल 2010 में 281 रुपये, साल 2014 में 410 रुपये, साल 2015 में 640 रुपये, साल 2021 में 859 रुपये और 2022 में 980 रुपये में रसोई गैस मिला करती थी. हालांकि उसके बाद साल 2023 में रसोई गैस की कीमत करीबन 1160 रुपये तक पहुँच गई थीं, जिसके बाद साल 2024 में इसकी कीमत घटा कर 860 रुपये केमत निर्धारित की गई है.ऐसे में लगातार बढ़ते इन दामों के कारण सबसे ज्यादा असर मध्यमवर्गीय लोगोंं पर देखने को मिला है. हालांकि महंगाई के इस दौर में रसोई गैस के लगातार बढ़ते और घटते दामों ने हर वर्ग के लोगों के घरेलू बजट को अस्थिर कर दिया है. वहीं सरकार की ओर से समय-समय पर कीमतों में राहत दी जाती है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है.