झारखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को शहरी निकाय चुनाव में लगातार हो रही देरी पर राज्य सरकार पर सख्त नाराजगी जताई। अदालत ने मुख्य सचिव अलका तिवारी से सवाल करते हुए कहा कि संविधान और राज्य कानून के अनुसार हर पांच साल में शहरी निकाय चुनाव कराना अनिवार्य है, लेकिन राज्य सरकार इसे अनदेखा कर रही है।
यह टिप्पणी हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत में रोशनी खलखो और अन्य द्वारा दाखिल अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान की गई। अदालत ने सरकार से यह भी पूछा कि चुनाव में देरी की वजह क्या है और क्यों सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि सुरेश महाजन केस के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन अब तक नहीं किया गया। अदालत ने याद दिलाया कि एक जनवरी 2014 को राज्य में तीन माह के भीतर चुनाव कराने का निर्देश दिया गया था। तब मुख्य सचिव ने 16 जनवरी 2025 को अंडर टेकिंग दी थी कि चार माह के भीतर चुनाव करा लिया जाएगा। लेकिन अब तक कोई चुनाव नहीं हुआ, और यह सीधे तौर पर कोर्ट की अवमानना का मामला बन गया है।
मुख्य सचिव अलका तिवारी कोर्ट में सशरीर उपस्थित थीं। उन्होंने कहा कि सरकार ने ट्रिपल टेस्ट के बाद ही शहरी निकाय चुनाव कराने का निर्णय लिया है। इसपर अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह ट्रिपल टेस्ट और संबंधित आदेश की प्रति रिकार्ड पर पेश करे। अदालत ने अगली सुनवाई 10 सितंबर को निर्धारित की और मुख्य सचिव को अगली सुनवाई में भी कोर्ट में उपस्थित रहने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान नगर विकास सचिव सुनील कुमार भी मौजूद थे।अवमानना याचिका में पूर्व पार्षद रोशन खलखो और अन्य ने दावा किया है कि सरकार लगातार चुनाव को टाल रही है। अधिवक्ता विनोद सिंह ने अदालत को बताया कि एक साल पहले ही चुनाव कराने का निर्देश दिया गया था, लेकिन अभी तक चुनाव नहीं कराए गए। उनके अनुसार, निकायों में जनप्रतिनिधियों के अभाव के कारण जनता के सामान्य कामकाज और स्थानीय प्रशासनिक निर्णयों पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी राज्य सरकार के लिए गंभीर चेतावनी के रूप में देखी जा रही है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि संविधान और कानून को दरकिनार नहीं किया जा सकता, और प्रशासन को अपनी जिम्मेदारी निभाना अनिवार्य है। अगली सुनवाई में कोर्ट चुनाव की स्थिति, सरकार की तैयारी और ट्रिपल टेस्ट प्रक्रिया की समीक्षा की हाईकोर्ट ने मंगलवार को शहरी निकाय चुनाव में लगातार हो रही देरी पर राज्य सरकार पर सख्त नाराजगी जताई। अदालत ने मुख्य सचिव अलका तिवारी से सवाल करते हुए कहा कि संविधान और राज्य कानून के अनुसार हर पांच साल में शहरी निकाय चुनाव कराना अनिवार्य है, लेकिन राज्य सरकार इसे अनदेखा कर रही है।
यह टिप्पणी हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत में रोशनी खलखो और अन्य द्वारा दाखिल अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान की गई। अदालत ने सरकार से यह भी पूछा कि चुनाव में देरी की वजह क्या है और क्यों सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि सुरेश महाजन केस के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन अब तक नहीं किया गया। अदालत ने याद दिलाया कि एक जनवरी 2014 को राज्य में तीन माह के भीतर चुनाव कराने का निर्देश दिया गया था। तब मुख्य सचिव ने 16 जनवरी 2025 को अंडर टेकिंग दी थी कि चार माह के भीतर चुनाव करा लिया जाएगा। लेकिन अब तक कोई चुनाव नहीं हुआ, और यह सीधे तौर पर कोर्ट की अवमानना का मामला बन गया है।मुख्य सचिव अलका तिवारी कोर्ट में सशरीर उपस्थित थीं। उन्होंने कहा कि सरकार ने ट्रिपल टेस्ट के बाद ही शहरी निकाय चुनाव कराने का निर्णय लिया है। इसपर अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह ट्रिपल टेस्ट और संबंधित आदेश की प्रति रिकार्ड पर पेश करे। अदालत ने अगली सुनवाई 10 सितंबर को निर्धारित की और मुख्य सचिव को अगली सुनवाई में भी कोर्ट में उपस्थित रहने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान नगर विकास सचिव सुनील कुमार भी मौजूद थे।
अवमानना याचिका में पूर्व पार्षद रोशन खलखो और अन्य ने दावा किया है कि सरकार लगातार चुनाव को टाल रही है। अधिवक्ता विनोद सिंह ने अदालत को बताया कि एक साल पहले ही चुनाव कराने का निर्देश दिया गया था, लेकिन अभी तक चुनाव नहीं कराए गए। उनके अनुसार, निकायों में जनप्रतिनिधियों के अभाव के कारण जनता के सामान्य कामकाज और स्थानीय प्रशासनिक निर्णयों पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी राज्य सरकार के लिए गंभीर चेतावनी के रूप में देखी जा रही है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि संविधान और कानून को दरकिनार नहीं किया जा सकता, और प्रशासन को अपनी जिम्मेदारी निभाना अनिवार्य है। अगली सुनवाई में कोर्ट चुनाव की स्थिति, सरकार की तैयारी और ट्रिपल टेस्ट प्रक्रिया की समीक्षा की हाईकोर्ट ने मंगलवार को शहरी निकाय चुनाव में लगातार हो रही देरी पर राज्य सरकार पर सख्त नाराजगी जताई। अदालत ने मुख्य सचिव अलका तिवारी से सवाल करते हुए कहा कि संविधान और राज्य कानून के अनुसार हर पांच साल में शहरी निकाय चुनाव कराना अनिवार्य है, लेकिन राज्य सरकार इसे अनदेखा कर रही है। यह टिप्पणी हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत में रोशनी खलखो और अन्य द्वारा दाखिल अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान की गई। अदालत ने सरकार से यह भी पूछा कि चुनाव में देरी की वजह क्या है और क्यों सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि सुरेश महाजन केस के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन अब तक नहीं किया गया। अदालत ने याद दिलाया कि एक जनवरी 2014 को राज्य में तीन माह के भीतर चुनाव कराने का निर्देश दिया गया था। तब मुख्य सचिव ने 16 जनवरी 2025 को अंडर टेकिंग दी थी कि चार माह के भीतर चुनाव करा लिया जाएगा। लेकिन अब तक कोई चुनाव नहीं हुआ, और यह सीधे तौर पर कोर्ट की अवमानना का मामला बन गया है। मुख्य सचिव अलका तिवारी कोर्ट में सशरीर उपस्थित थीं। उन्होंने कहा कि सरकार ने ट्रिपल टेस्ट के बाद ही शहरी निकाय चुनाव कराने का निर्णय लिया है। इसपर अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह ट्रिपल टेस्ट और संबंधित आदेश की प्रति रिकार्ड पर पेश करे। अदालत ने अगली सुनवाई 10 सितंबर को निर्धारित की और मुख्य सचिव को अगली सुनवाई में भी कोर्ट में उपस्थित रहने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान नगर विकास सचिव सुनील कुमार भी मौजूद थे।
अवमानना याचिका में पूर्व पार्षद रोशन खलखो और अन्य ने दावा किया है कि सरकार लगातार चुनाव को टाल रही है। अधिवक्ता विनोद सिंह ने अदालत को बताया कि एक साल पहले ही चुनाव कराने का निर्देश दिया गया था, लेकिन अभी तक चुनाव नहीं कराए गए। उनके अनुसार, निकायों में जनप्रतिनिधियों के अभाव के कारण जनता के सामान्य कामकाज और स्थानीय प्रशासनिक निर्णयों पर प्रतिकूल असर पड़ा है।हाईकोर्ट की यह टिप्पणी राज्य सरकार के लिए गंभीर चेतावनी के रूप में देखी जा रही है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि संविधान और कानून को दरकिनार नहीं किया जा सकता, और प्रशासन को अपनी जिम्मेदारी निभाना अनिवार्य है। अगली सुनवाई में कोर्ट चुनाव की स्थिति, सरकार की तैयारी और ट्रिपल टेस्ट प्रक्रिया की समीक्षा की