कार्तिक अमावस्या पर बौद्ध अनुयायियों ने मनाया बुद्ध दीपदान महोत्सव, करुणा और शांति का संदेश
बोधगया/वैशाली : कार्तिक अमावस्या के अवसर पर रविवार को प्रदेशभर में बुद्ध दीपदान महोत्सव श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। बौद्ध अनुयायियों ने विहारों, स्तूपों और बोधिवृक्ष के नीचे दीप प्रज्वलित कर भगवान बुद्ध के करुणा, शांति और ज्ञान के संदेश को स्मरण किया। इस अवसर पर बौद्ध भिक्षुओं और श्रद्धालुओं ने संकल्प लिया कि वे बुद्ध के बताये मार्ग पर चलकर समाज में शांति, प्रेम और अहिंसा का संदेश फैलाएँगे।
इतिहासकारों के अनुसार, बुद्ध दीपदान महोत्सव की परंपरा सम्राट अशोक के समय से जुड़ी है। कहा जाता है कि बुद्ध के ज्ञानोदय के बाद अशोक ने उनके उपदेशों से प्रेरित होकर सम्पूर्ण भारत में 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया और यह घोषणा की कि कार्तिक अमावस्या की रात दीप जलाकर बुद्ध के उपदेशों को स्मरण किया जाए। तब से यह दिवस बुद्ध दीपदान पर्व के रूप में मनाया जाता है।
विहारों में आयोजित कार्यक्रमों के दौरान ‘नमो बुद्धाय’ के जयघोष से वातावरण गूंज उठा। भिक्षुओं ने प्रवचन देते हुए कहा कि दीपदान का अर्थ केवल दीप जलाना नहीं, बल्कि अपने भीतर के अंधकार — अज्ञान, लोभ और क्रोध — को मिटाना है। बुद्ध ने कहा था, “मैं मुक्तिदाता नहीं, मार्गदाता हूँ। अपना प्रकाश स्वयं बनो।”
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए और भगवान बुद्ध से करुणा, शांति और ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त किया।






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