इसके साथ ही राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर अलका तिवारी की नियुक्ति भी हो चुकी है। इन दोनों अहम प्रक्रियाओं के पूरे होने के बाद अब झारखंड में निकाय चुनाव कराने का रास्ता लगभग साफ हो गया है।नगर विकास विभाग के सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार दिसंबर या जनवरी तक निकाय चुनाव करा सकती है। इससे राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई है और विभिन्न दलों ने तैयारी शुरू कर दी है।
ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट से तय होगा पिछड़ा वर्ग का आरक्षण निकाय चुनाव कराने से पहले पिछड़ा वर्ग आयोग ने राज्य के सभी 48 नगर निकायों में डोर-टू-डोर सर्वे कराकर रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की त्रुटि न रहे, इसके लिए फाइनल रिपोर्ट तैयार करने का जिम्मा संत जेवियर कॉलेज, रांची को दिया गया था।
21 अगस्त को कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. फादर रॉबर्ट प्रदीप कुजूर ने यह रिपोर्ट आयोग के अध्यक्ष जानकी प्रसाद यादव को सौंपी थी।
इस रिपोर्ट को तैयार करते समय मध्य प्रदेश में हुए ट्रिपल टेस्ट अध्ययन का भी विश्लेषण झारखंड के परिप्रेक्ष्य में किया गया है।फाइनल रिपोर्ट में हर निकाय के अनुसार पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग मतदाताओं की संख्या का पूरा विवरण दिया गया है। इसी आधार पर राज्य के 48 नगर निकायों में आरक्षण तय किया जाएगा।
मार्च 2026 तक निकाय चुनाव कराने की डेडलाइन राज्य सरकार के पास नगर निकाय चुनाव कराने की अंतिम डेडलाइन मार्च 2026 तय की गई है। अगर सरकार समय पर चुनाव नहीं कराती है, तो 15वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार झारखंड को केंद्र से तीन वित्तीय वर्षों की राशि नहीं मिलेगी। 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने अपने रांची दौरे के दौरान कहा था कि यदि राज्य इस साल चुनाव कराता है तो केंद्र से रोकी गई अनुदान राशि जारी की जाएगी।
यह राशि तीन वित्त वर्ष — 2023-24, 2024-25 और 2025-26 — के लिए होगी।
फिलहाल, राज्य को वर्ष 2023-24 और 2024-25 के लिए क्रमशः 713-713 करोड़ रुपये केंद्र से मिलने हैं। यानी पिछले तीन वित्तीय वर्षों में झारखंड को करीब 2000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि का नुकसान हो सकता है अगर चुनाव समय पर नहीं हुए।
ट्रिपल टेस्ट की फाइनल रिपोर्ट नगर विकास विभाग को सौंपी गई।
अलका तिवारी बनीं नई राज्य निर्वाचन आयुक्त।
दिसंबर या जनवरी तक चुनाव कराने की संभावना।
रिपोर्ट में 48 निकायों में OBC और EBC मतदाताओं की संख्या का ब्यौरा।
मार्च 2026 तक चुनाव कराने की डेडलाइन तय।
चुनाव न होने पर राज्य को 2000 करोड़ से अधिक का नुकसान हो सकता ह।
झारखंड में पिछले ढाई साल से लंबित निकाय चुनाव अब अपने अंतिम चरण में पहुंचते दिख रहे हैं। आयोग की रिपोर्ट और राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के बाद दिसंबर-जनवरी में चुनाव की संभावना बेहद मजबूत हो गई है।अब राज्य सरकार और नगर विकास विभाग पर यह जिम्मेदारी है कि समय रहते सभी तैयारियां पूरी की जाएं, ताकि झारखंड में शहरी निकायों का जनादेश फिर से तय हो सके।
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